ऐसा पर्व मनाए हिंदी….
ऐसा पर्व मनाए हिंदी —
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भारती के भाल सजे, सम्मान जग में पाए हिंदी।
स्वर्णिम इतिहास अपना, आज फिर दोहराए हिंदी।।
मात्र भाषा ही नहीं ये, जान है निज संस्कति की।
ध्वज अपने प्रतिमानों का, विश्व में फहराए हिंदी।।
एक ताल पर इसकी, थिरक उठे ये जग ही सारा।
गूँज उठें सकल दिशाएँ, गीत कोई जब गाए हिंदी।।
गंध निज माटी की सोंधी, वर्ण-वर्ण से इसके आए।
संस्कारों की खुशबू भीनी, देश-देश बगराए हिंदी।।
बँधें बोलियाँ एक सूत्र में, माला के रंगीं मनकों-सी।
उन्नत भाल भरा हो गर्व से, कंठहार बन जाए हिंदी।।
ओछे खेल में राजनीति के, जन-मन भटक न पाए।
भाषायी सब झगड़े, सूझ से अपनी सुलझाए हिंदी।।
विविधता में एकता की, झलक जहाँ पर दे दिखाई।
बन-ठन आएँ सभी बोलियाँ, ऐसा पर्व मनाए हिंदी।।
बात निराली मातृभाषा की, लगती माँ- सी प्यारी।
दिखावे का प्यार और का, नेह माँ-सा छलकाए हिंदी।।
सम्मोहित हो उसके पीछे, जो तुम ऐसे दौड़ रहे।
उस भाषा में क्या है ऐसा, जो न तुम्हें सिखलाए हिंदी।।
गुलामी के व्यामोह से, अब तो मन अपना मुक्त करो।
बड़े गर्व से बड़ी शान से, ओठों पे तुम्हारे आए हिंदी।।
– © डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )