ऐसा गया बिलट के…
ऐसा गया बिलट के…
ऐसा गया बिलट के।
देखा नहीं पलट के।
किस्मत कैसी लंपट,
खेली खेल कपट के।
नन्हीं खुशियाँ मेरी,
ले ही गयी झपट के।
पाकर उसकी आहट,
भागी नींद उचट के।
मिला नहीं सुख मेरा,
देखा उलट-पलट के।
सेहत बिगड़ न पाये,
खायी दवा निपट के।
गम को गले लगाया,
रोये खूब लिपट के।
‘सीमा’ अपनी जानी,
खुद में रहे सिमट के।
बुझती लौ जीवन की,
बस यूँ ही घट-घट के।
– ©डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“मनके मेरे मन के” से