ऐसा क्यों कहने लगे
कुंडलिया छंद…
ऐसा क्यों कहने लगे, साहब हमसे भूल।
झोंक रहे फिर से पता, हो आँखों में धूल।।
हो आँखों में धूल, व्यर्थ विश्वास जगाना।
क्या संभव है पुनः, गले मनतोड़ लगाना।।
पीड़ा का अहसास, बताओ होता कैसा।
‘राही’ साहब साथ, निभाता कोई ऐसा।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)