ऐसा कोई शिखर नहीं ..
ऐसा कोई शिखर नहीं ..
ऐसा कोई शिखर नहीं ..
जिसे हम छू नहीं सकते,
ऐसा कोई डगर नहीं..
जिस पर हम बढ़ नहीं सकते।
याद कर उन चित्रांशों को,
जो दुसरों की तकदीर गढ़ा करते थे..
फिर ऐसी क्या बात है _
जिसे हम कर नहीं सकते।
हमारा सोच ही हमारी दिशा है
सोचें तो सही, होगा फिर वही ।
जैसे बचपन की हर जिद,पूरी होती थी।
वैसे ही अपने सपने को,
जिद में तब्दील कर लें यदि,
फिर तो पतवार खुद-ब-खुद चलेगी,
प्रतिकूल हो यदि धाराएँ
फिर भी न रुकेगी ।
ऐसी कोई धाराएँ नहीं..
जिसे हम पार कर नहीं सकते।
ऐसा कोई शिखर नहीं ..
जिसे हम छू नहीं सकते।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि -२४ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201