ऐलान कर दिया….
‘आजाद हो तुम आज से’, ऐलान कर दिया।
क्या अब कहें कहकर हमें, बेजान कर दिया।
नादान थे समझे नहीं, बातें जहर बुझी,
तुमने कहा हमने सुना, उस कान कर दिया।।
नाराजगी भी थी अगर, कहते हमें कभी
ये क्या कि बिन कुछ भी कहे, चालान कर दिया।
हमसे दगा करके दया, आयी नहीं तुम्हें !
कुछ तो कहो क्यों प्यार का, अपमान कर दिया।
टूटा हुआ दिल क्या करे, अवसाद के सिवा !
सिक्के उछाले प्यार का, भुगतान कर दिया।
बढ़ते गये नित फासले, किसकी लगी नजर !
लाकर खड़ा गम के हमें, दरम्यान कर दिया।
कितने सनम कर लो सितम, होता न अब असर,
नाजुक नरम दिल को पका, चट्टान कर दिया।
लाँघीं नहीं हमने कभी, तकरार में हदें,
ऊँचाइयाँ दे प्यार को, भगवान कर दिया।
देखा किए अनथक तुम्हें, हटती न थी नजर,
दिलो-जिगर अपना सभी, कुर्बान कर दिया।
दिल को यही इक रंज है, कैसे करे सबर,
महका हुआ हँसता चमन, वीरान कर दिया।
है स्वार्थ ही परमोधरम, जग का यही मरम,
इंसान को किसने यहाँ, हैवान कर दिया।
आना नहीं ‘सीमा’ कभी, अब इस जहान में,
अच्छे-बुरे हर कर्म का, भुगतान कर दिया।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद