ऐनक
जीने का गुन देती मैया ,
जीवन धन्य बनाती माँ।
अवगुण दूर भगाकर सारे,
मंजिल तक पहुँचाती माँ।
जब कुछ नज़र न आये मुझको,
माँ ऐनक बन जाती है।
अंधकार को चीर के मैया ,
ज्योति सी जल जाती है।
हर मुश्किल को दूर भगाए ,
पल में राह दिखाए माँ ।
शिक्षक बन कर बात बात पर,
अच्छा सबक सिखाये माँ।
शीश उठा कर जिऊँ जहाँ में,
माँ ने मुझे सिखाया है।
दया भाव और त्याग प्रेम का ,
माँ ने पाठ पढ़ाया है ।
सदा रहूँ सेवा में तत्पर ,
अजब अनोखी न्यारी माँ।
सबसे अलग थलग है देखो,
मेरी अपनी प्यारी माँ।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’