ऐंसे भी घर हैं
घर की दीवारें छत पर जाने
को आतुर हैं
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं
बनी दरारें रोशन दान
गिरगिट छिपकलियाँ मेहमान
दरवाजे से भीतर घुसने
में डरते डर हैं ।
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं ।।
छत से सूरज रोज ढूँकता
खुद चूल्हों में आग फूँकता
हवा घूमती घर में जैंसे
वंशी के स्वर हैं
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं ।।
बुढ़िया के हाथों की रोटी
कुछ चपटी सी मोटी मोटी
सिल पर पिसे मसालों बघरी
सागों में तर हैं ।
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं ।।
देखे ऐंसे महल सुहाने
जिनके अंदर भरे खजाने
रोज कलह की किल किल में
जीते नारी नर हैं ।
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं ।।
कांटों में गुलाब खिलता है
पीड़ाओं में सुख मिलता है
जीवन के सुख दुख मानव के
मन पर निर्भर हैं ।
एक नहीं दो नहीं अनेकों
ऐंसे भी घर हैं ।।