ए ज़िन्दगी
कुछ साँसे और मेरी ,
मन करे तो गिन दे
नहीं तो , कफ़न बन
मुझ पर मौत लपेट दे
रूठी है अब रूठी ही सही
झूठ ओढ़ मुस्काने का तू
मुझे ऐब दे , फरेब दे
क्यूँ कहना , क्या है गम
गुजर जाने दे मुझे
बेपरवाह मुस्कुराते
रूठी , तो रूठी ही रह
थक गए हैं अब
ए ज़िन्दगी
तुम्हे मनाते मनाते