ए मुसाफ़िर
ए मुसाफ़िर तू बस चलता जा ,
हर रहा पर हर किसी से मिलता जा ।
जो साथ दे उनकी दुआए करता जा ,
और जो साथ छोड़ दे उस मोड़ पर उनसे कुछ बाते सीखता जा।
अपनी मंजिल को पाने की रहा बनाता जा ,
जो बने काटे रहा में तो उनको,
अपनी मुस्कुराहट से फूल बनाता जा ।
ए मुसाफ़िर तू बस चलता जा,
नाकामी मिले कभी तो उससे पीछे मत हट्टा जा ।
करे लोग बुराई तो उसे अच्छे में बदलता जा ,
मुश्किलों के पहाड़ अपनी रहा से हटाता जा।
अपनी अच्छाई के फूल खिलाता जा ,
ए मुसाफ़िर तू बस चलता जा।
– Prachi Verma