ए भूख तूने ये क्या किया.?
ऐ भूख तूने ये क्या किया,
इंसान को, पेट तक सीमित कर दिया..।
ना दर्द दिखता, ना दिखती वेवशी,
हर किसी को अपना पेट भरने की पड़ी
दूसरों का निवाला, अपने मुँह में रख लिया
ऐ भूख तूने इंसान को, जानवर में तब्दील कर दिया..।
भरके सोया रात को,
दिन में खाली कर बैचेन कर दिया,
ऐ भूख तूने इंसान को,
फूटा घड़ा कर दिया..।
पेट अंधा कुआ है,
और मन है अतृप्त अंधी बाबडी
ना भरता कभी अंधा कुआ,
ना भरती कभी अतृप्त बाबड़ी.।
रात-दिन मिलाकर,
हर किसी को जीभ ने लालच में खड़ा कर दिया,
मन, बुद्धि, प्रज्ञा, विवेक को भी,
भूख तूने बेजान कर दिया..।
भूख मिटती कहाँ खजाने से,
ये तो और बढ़ती है स्वाद-स्वाद खाने,
भूख खत्म होती ईमानदारी शिष्टाचार से,
तूने इस विचार को मिट्टी में दफ़्न कर दिया,
ऐ भूख तूने ये क्या किया..???
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली-07