*ए फॉर एप्पल (लघुकथा)*
ए फॉर एप्पल (लघुकथा)
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“माँ ! मुझे तो ए फॉर एप्पल खाना है ।”- चिरंजीव ने बिलखते हुए कहा । दरअसल यह काफी समय से हो रहा है । चिरंजीव की आयु तीन वर्ष की है । माँ यशोदा उसे घर पर ही अंग्रेजी की वर्णमाला सिखा रही थी। अंग्रेजी की वर्णमाला में जब ए फॉर एप्पल सिखाया गया तो चिरंजीव के पापा सुबोध उसके लिए एक सेब भी बाजार से ले आये।
यशोदा ने टोका भी था ” सुबोध ! इतना महंगा सेब लाने की क्या जरूरत थी ? और “बी फॉर बनाना” का काम सस्ते केले से हो ही जाता ?”
लेकिन सुबोध ने कहा “बच्चों को किताब में जो चीज वह देख रहे हैं ,प्रत्यक्ष भी दिखाना अच्छा रहता है ।”
यशोदा चुप हो गई थी। बात ठीक भी थी। मगर उसके बाद जब भी किताब खोल कर चिरंजीव को पढ़ाया जाता तो वह यही कहता कि मुझे ए फॉर एप्पल खाना है। यशोदा परेशान हो गई । रोज-रोज बाजार से सेब खरीद कर लाया भी तो नहीं जा सकता था ! महंगी चीज है ! हारकर उसने ए फॉर एप्पल के बजाय “बी फॉर बनाना” से पढ़ाई की शुरुआत करनी चाही। मगर “बी फॉर बनाना” कहते ही चिरंजीव पन्ने को पीछे की तरफ पलट देता था और चित्र में बने सेब की ओर संकेत करते हुए कहता था “यह ए फॉर एप्पल है । मुझे ए फॉर एप्पल खाना है ।”
आज जब चिरंजीव ज्यादा ही शोर मचाने लगा तो यशोदा की आँखों में आँसू आ गए । सुबोध से बोली “यह कोर्स बनाने वाले क्या ए फॉर एप्पल की जगह कोई और सस्ती चीज नहीं बना सकते थे ?”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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