ए- ज़िन्दगी आ तेरा हिसाब कर दूँ
ए ज़िन्दगी आ तेरा हिसाब कर दूँ
तूने जो सुख् और दुःख दिए हैं मुझे
बचपन से जवानी
और अब बुढ़ापे तक
कभी ज़ीता था मैं
बस ज़ीने के वास्ते
ख़ुद के अपने वास्ते
अज़ीब से मोड़ आए
अनेकों आए रास्ते
कैसे करूँ अदा शुक्रिया
ए ज़िन्दगी तेरे वास्ते
तूने जो कभी रुलाया
और हँसाया था मुझको
गैरों से कभी अपना
बनाया था मुझको
गिरने से कभी संभाला था मुझको
डूबने से कभी बचाया था मुझको
और मेरा शक मेरा मन
बस चार दिन का सोचता तुझे
तेरी कभी कद्र न की
तुझे कभी मान न दिया
वो तेरी खामोशियाँ
मेरे दुःखों के समय
तेरा होना उतावला
मेरे ख़ुशी के वक्त
मेरे रोने पर तेरा रोना
मेरे हँसने पर तेरा भी हँसना
मेरे दर-दर मेरे संग-संग
तेरा भी चलना…
सिसकियों के साथ मेरे सिसकियाँ भरना
मैं कर्जदान हूँ तेरा ए-ज़िन्दगी
बस तुझे कभी जान न पाया
तुझे कभी पहचान न पाया
सोचा बहुत…….
कर क्या सकता हूँ तेरे वास्ते
शब्दों को पिरो बस कविता
बुन सकता हूँ तेरे वास्ते
याद रहेगा तेरा हर आयाम मुझे
कलम मेरी ये गवाही देगी मुझे
ए-ज़िन्दगी आ तेरा हिसाब…..
—————–
25/06/2017 #बृजपाल सिंह