ए आसमां
आसमां
तू मूक कैसे रह लेता है ऐ आसमां,
कितना कुछ गुजरता है
तेरी आँखों से दिन रैन,
और फिर भी तू रह लेता है कैसे यूँ,
निरबेद, निर्विघ्न,
न नहीं है निर्दयी तू,
मगर एक अदना सा भी आँसू,
नहीं झरते देखा कभी
तेरी आँखों से,
हाँ बरसता सा लगता है कभी,
गरजता भी,
मगर मेघों के तांडव के परे भी,
तू रहता है अविचल ही,
क्या तेरा मन नहीं होता कभी कि,
लिपटूं धरती के आँचल से,
रो लूँ गले लग जी भर,
या सो लूँ रख के दामन पे सर,
दो पल…