एहसास
रात का मौन गहरा चारों तरफ सन्नाटा,
अंतर्मन में शोर कैसा ये उठ रहा था,
भीड़ में भी तन्हाई का आलम बसा था,
और तन्हाई को किसने अपनी यादों से बाँटा।
ख़्वाहिशें मन में जो पलने लगी थी साथ तेरे,
जिद कैसी आने लगी थी मन को मेरे,
भावनाओं पर जोर नही चलता दिखे,
रात की कालिमा छंटने की थी देखो सवेरे।
बेतरतीब धड़कनें आँखों में हल्की नमी थी,
अपना कह दे जो वह मुझको ये कमी थी,
शब्द थे मौन की वह एहसासों को समझे,
अवनि से अम्बर तक बस चाहतें बसी थी।
अपनी भावनाओं को बेमोल होने से बचा लें,
कश्कमश यही थी कि कैसे उसको छुपा लें,
रख कर दिल पर संयम का एक पत्थर,
होठों को मुस्कुराहट से चलो हम सजा लें।