एहसासों से भरे पल
हर लम्हे में कई पलो को समेटे बैठा हूं
हां मैं अपने बरामदे में चाय लिए बैठा हूं
चाय के हर घुट में यादें सजाए बैठा हूं
शाम के वक्त में मद्धम सी हवाओं के साथ बैठा हूं
कभी आना तो बांटेंगे इन लम्हों को साथ तुम्हारे
जो लिए कब से मैं साथ बैठा हूं
सुशील मिश्रा