एहराम
वो कोई और नाम लिख रहा था मेरे नाम पर
परदा डाल दिया मेरे वजूद के एहराम पर
बडी शिद्दत से जी रही थी जिन पलो को मै
कालिख ही पोत दी हमारी सुनहरी शाम पर
हर दर्द उसका खुद पर झेल आये हम
रह गये आज तन्हा अपने मुकाम पर
जिसको सौंपी थी वफा बिना किसी मोल
उसने दफन कर दी “प्रीति” उसूलो के दाम पर