एक सैनिक की वेदना
मिरे सीने में कोई गोली जब दगी होगी
तड़प के नींद से माँ चौंक कर जगी होगी
समझ न आया होगा दिल के धड़कने का सबब
छू के तस्वीर मेरी रोने वो लगी होगी
टूटकर लाठी बाबू जी की गिर गयी होगी
घटा काली सी छत पे आ के घिर गयी होगी
हवा ने उनको भी इशारा कुछ किया होगा
आँख की रोशनी धीरे से फिर गयी होगी
सिर से पल्लू मेरी जाँ के उतर गया होगा
उसका सिन्दूर हवा में बिखर गया होगा
टूटी चूड़ी ने किया होगा कलाई घायल
सोचकर मुझको तन-बदन सिहर गया होगा
न जाने क्यों मेरा भाई भी डर गया होगा
छोड़ सब काम दौड़कर के घर गया होगा
घूमा होगा न जाने कितनी देर सिर उसका
कुछ एक पल को तो लम्हा ठहर गया होगा
उल्टे-सीधे ख्यालों से वो भी मिली होगी
बीच काँटों के घिरी नन्हीं सी कली होगी
मन में डर बैठ गया आ के भला कैसे कहे
बहन के ख्वाब में जब राखियाँ जली होंगी
खेलते-खेलते मुन्ना भी गिर पड़ा होगा
बिना अँगुली के मेरे कैसे वो खड़ा होगा
मर के भी जिन्दा रहूँगा मै जिस्म उसके
दिखेगा मेरे जैसा ही वो जब बड़ा होगा
सारी खुशियाँ समेटकर के ले जाने वालों
नींद बिस्तर पे सुकूँ की सदा पाने वालों
हम भी कर सकते थे कुछ और कमाने के लिए
खेती कर सकते थे दो जून के खाने के लिए
तुम तो घूमें हो देश दुनिया बड़े फुरसत में
हमारी बीवी औ बच्चे तो तरसते ही रहे
गमों का बोझ मगर मुल्क की जिम्मेदारी
मार दुश्मन को ठहाके लगा हँसते ही रहे
मुल्क की कीमत दौलत से न कभी तोली
दिवाली राइफल से खून से खेली होली
बर्फ के नीचे वास्ते जमीं सुलगते थे
सो सको चैन से तुम इसलिए ही जगते थे
साँस अब टूट चुकी मौत की बाहों में हूँ
जा रहा हूँ मैं मगर स्याह सी राहों में हूँ
सुकूँ मिलेगा मुझे गर न तुम भुला पाए
जो एक दीप मेरे वास्ते जला पाए