एक सलाह
परखना अच्छे से,फिर दिल में जगह देना
है आदत लोगों की,अपना बन के दगा देना
शोला-ए-जख्म,छुपा ले नजरों से इसकी
करता है पसंद जमाना,शोलों को हवा देना
है बेकार करना यारों,उम्मीद हुस्न वालों से
ये जानते नहीं,बदले में वफ़ा के,वफ़ा देना
होती है तकलीफ़ कितनी,ये मैं जानता हूँ
आसान नहीं होता,अरमानों को जला देना
मिला ही नहीं,आज तक,हकीम कोई ऐसा
हो जानता जो,मर्ज-ए-इश्क की,शफ़ा देना
हुआ मालूम मुझे,शब भर,रो कर ऐ “अश्क”
है मुश्किल बहुत,यादें आँसूओं में,बहा देना
अरविन्द “अश्क”