एक समय की बात
एक महाशय से मैंने पूछा
क्यों भई, मेरी रचनाएं पढ़ते हो ?
वे बोले, जन विरोधी रचनाएं लिखकर
जनता से ही पूछते हो ll
मैं बोला, न मैं जन विरोधी रचनाएं लिखता हूं
न मन विरोधी, न तन विरोधी l
मैं रचनाएं लिखता हूं तो सिर्फ आतंक विरोधी ll
इतने में उसने एक पत्थर मेरी ओर फेंका l
मैंने पत्थर ऐसे कैच किया, जैसे कोई क्रिकेटर
क्रिकेट बॉल को करते हैं
इसे मेरे साथ दो-चार लोगों ने भी देखा ll
मैं बोला, रचनाकार के साथ मैं कैचर भी हूं
इसलिए ये पत्थर मेरे हाथ में पकड़ाया l
ये सुन उसने अपना पैर आगे बढ़ाया ll
कैचर के साथ बॉलर होने के नाते
मैंने पत्थर उसके सिर पर दे मारा l
पत्थर पड़ते ही वहीं गिर पड़ा बेचारा ll
उसके सिर पर चोट गहरा छाया था l
उस दिन अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं आया था ll
किसी ने मरहम-पट्टी लाकर मुझे दिया l
मैंने ही उसका दवा-दारू किया ll
कुछ देर बाद वे बोले
मैं पहले जनता था
कि आप जन विरोधी रचनाएं ही लिखते हैं l
मुझे आज पता चला
आप मरीजों का इलाज भी करते हैं ll
दो-चार लोगों ने भी
उसके बातों में बात दी l
लेकिन ऐसे रचनाकार आज मिलते कहां हैं
ये तो एक समय की बात थी ll
✍️_ राजेश बन्छोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024