एक व्यंग.बारिश और नगर पर
मेघा रे मेघा रे,
तू परदेश न जा रे
बड़े दिनों के बाद
तू आया शहर में
आज सब को
जम के भिगो रे !!
बच न पाए कोई
भी, हाल कर
सब का बुरा
देखना है अब
तक नगर
निगमों ने
काम किया
या है, अधूरा ???
कहते हैं धन
नहीं मिलता
बल नहीं मिलता
सब ऊपर वाले
खा जाते हैं
क्या ऊपर वाले
किसी स्पेशल
जगह से आते हैं !!
चुन कर तुमने
ही बैठाया था
अब धन क्या जनता
देगी, जब काम
नहीं करना है
तुमको तो क्यों
नखरे करते हो
यह सेवा भी
तुम को जनता देगी ??
भगवान् इतना बरसा
की यहाँ सब खुल
जाये इनकी पोल
यह रोजाना पब्लिक
का करते हैं
गोलम गोल,
मेघा रे मेघा खूब
बरस, खूब बरस
और खूब बरस ???
अजीत तलवार
मेरठ