एक वो बिहार था
थे वेदमंत्र के स्वर उभरते
पवित्र कुरान की पढ़ती आयत
न्याय की गरिमा बिखर गयी है
पाशविकता ने दी है आहट.
मोर्य वंश और गुप्त वंश का
स्वर्णिम युग था शासन काल
गर्वित होकर इतिहास सुनाती
उस सुन्दर पल-छिन का हाल.
विश्वविख्यात था नालंदा का
अनुपम सा शिक्षा-संस्थान
अर्थशास्त्र के हुए रचयिता
श्रेष्ठ गुरु चाणक्य महान.
बोधगया में ज्ञान को पाकर
गौतम बुद्ध बने भगवान
विश्व-शांति का सन्देश सुनाता
राजगीर का पावन धाम.
एक से बढ़कर एक हुए थे
नेता-कवि –लेखक-विद्वान
देश पर जान लुटाने वाले
अनगिनत थे वीर तमाम.
आज कहीं दम तोड़ रही है
मानवता की हर पहचान
इंसानों की शक्ल में जैसे
घूम रहा उन्मत हैवान .
राजनीती हो गयी डरावनी
प्रतिशोध की ज्वाला है विकराल
वीभत्स मानसिकता के कारण
छिन जाते हैं माँ के लाल.
नेताओं की संतानों में
विलासिता ही है जंजाल
पशुता का ही परिचय देता
हिंसक बन जाता तत्काल.
वारदात होती ही रहती
तार – तार होती मानवता
शिक्षा की कोई मूल्य नहीं
रक्त-रंजित है अर्थ-व्यवस्था.
चिर-काल तक था जीवंत बन
उर में जज्बातों की फुहार
विश्वास का दीप फिर से जलेगा
आशंका है मन में अपार.
भारती दास ✍️