एक विरह पाती- यूँ भी
जो भी लिखा है तुझको ,खयालों की गर्द है
हम चैन से हैं भाई , यहां किसको दर्द है
ना ये हिज़्र-ए-यार होता, ना ये खयालो ख्वाब होते
तो किसे पड़ी थी कि रोते, तेरी शान मे ये कशीदे
ना समझ बदल गया हूं , तेरी याद मे जो लिखा है
ये है फासलों का धोखा, गर चांद सा तू दिखा है
सो तू लौट आ भरम से, अपने वही हैं रगड़े
वैसी ही होगी किचकिच, और ठीक वैसे झगड़े
ले गाँठ बांध लें तू ,ये बात मेरी देशी
मोहब्बत में साथ हैं हम, पर झगड़े में हम पड़ोसी
मेरा प्यार, मेरी किचकिच दोनों हैं एक मियादी
हरदम ये साथ होंगे, बन जाओ चाहे दादी
तुझसे जुदा नही जब, तकल्लुफ कहाँ से लाऊं
जैसा भी हूँ अब झेलो, दूसरा कहाँ से लाऊं