एक लड़की…….
एक लड़की के जन्म लेते ही घर का बोझ बढ़ जाता है,
ज़िम्मेदरियाँ बढ़ जाती है,
उसकी मासूमियत देखकर हर कोई उससे खेलना चाहता है पर अपने अपने तरीके से,
उसका बचपन खत्म हुआ ही था की शुरू कर दिया जाता है उसके बचपने को खत्म करना,
उन्हें इज़्ज़त, मान, मर्यादा का हर पाठ पढाया जाता है,
कब हँसना है कब नहीं ये भी बताया जाता है,
किससे किस लहजे मे बात करनी है ये भी सिखाया जाता है,
क्या पहनना है क्या नहीं ये भी बताया जाता है,
क्या क्या सही है ये तो बता देते है लोग,
पर क्या गलत है कभी इसपर गौर किया है,
सही लहजा, सही बातें सब बढ़-चढ़कर बताते है,
गलत स्पर्श क्या है इस पर क्यों चुप रह जाते है,
उन्हें बचपन से ये क्यों नहीं सिखाया जाता की हर स्पर्श अच्छा नहीं होता,
ये क्यों नहीं बताया जाता की हर इंसान सच्चा नहीं होता,
बचपन से ही बुरी नज़रें उनपर पड़ने लगती है,
उनसे खेलने का सिलसिला शुरू हो जाता है,
जिन हाथों को सर पे होना चाहिय वो ना जाने कहा कहाँ चले जाते है,
हवस के शिकार लोग ना जाने क्या क्या कर जाते है,
बेटी के बड़े होते ही उसे घर की इज़्ज़त से जोड़ दिया जाता है,
गलत करता कोई और है और मुँह उससे मोड़ लिया है,
बचपन से बड़े होने तक इतना कुछ सह जाती है,
हद तो तब होती है जब वो ऐसी बातें अपनी माँ को भी नहीं कह पाती है,
क्यों , क्यों नहीं कह पाती,
क्योंकि घर पे कभी ऐसी बातें हुई ही नहीं,
कभी बताया ही नहीं गया की ऐसा कुछ भी हो सकता है ,
कभी सिखाया ही नहीं गया की इंसान भी जानवर हो सकता है,
गलती से अगर वो सब बता भी दे तो,
उसकी शादी की तयारियाँ शुरू कर दी जाती है ये बोलकर की कहीं घर की इज़्ज़त पे आँच ना आ जाए,
उसके दर्द को कोने मे रख उसे रस्मों मे यूँ उलझा दिया जाता है कि वो ठीक से सांस भी ना ले पाए,
पर क्या शादी के बाद सब ठीक हो जाता है,
फ़िर उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं होती,
होती है,
उनके साथ खिलवाड वहाँ भी होता है बस तरीका बदल जाता है,
कभी दहेज के लिए उनका शोषण किया जाता है,
कभी घर से निकाल दिया जाता है,
कभी जिंदा जला दिया जाता है,
कभी नदी मे बहा दिया जाता है,
और यहाँ भी घर की इज़्ज़त के लिए वो चुप हो जाती है,
कभी कुछ पल के लिए कभी हमेशा के लिए,
घर की इज़्ज़त के लिए वो अपनी इज़्ज़त की बलि चढ़ा देती है,
माँ बाप अगर मान मर्यादा की शिक्षा देते वक़्त सही गलत की शिक्षा भी दे दे तो शायद उन्हें इतना सहना ना पड़े,
अपनी आवाज़ होते हुए भी उन्हें चुप रहना ना पड़े,
बड़ी तकलीफ़ मे रहती हैं वो जिंदगी भर,
उन्हें समझो उन्हें दर्द नहीं प्यार दो,
बस मेरी गुज़ारिश् है इतनी सी,
की इंसानो मे बची इंसानियत रहने दो,
उन मासूमो की प्यारी मासूमियत रहने दो,
वरना फिर इस संसार मे कोई परी ना मुस्कुरायेगी,
अगर युं ही चलता रहा सिलसिला उनसे खेलने का,
वो लड़की नहीं बस जिंदा लाश नज़र आएगी।
✍️वैष्णवी गुप्ता (Vaishu)
कौशाम्बी