एक रुबाई…
एक रुबाई…
दर्द सभी का समझो यारों, सच्चा फ़र्ज़ तुम्हारा है।
जीत गया हर बाजी जग में, जो अपनों से हारा है।।
जीत सको तो जीतो ख़ुद से, जीवन अभिराम बनेगा;
जीत-हार के संतुलन में ही, हर ग़म से छुटकारा है।।
आर. एस. ‘प्रीतम’
एक रुबाई…
दर्द सभी का समझो यारों, सच्चा फ़र्ज़ तुम्हारा है।
जीत गया हर बाजी जग में, जो अपनों से हारा है।।
जीत सको तो जीतो ख़ुद से, जीवन अभिराम बनेगा;
जीत-हार के संतुलन में ही, हर ग़म से छुटकारा है।।
आर. एस. ‘प्रीतम’