एक मौन
घर
घर में होती है अक्सर
चार दीवारी एक छत छत पर लगा पंखा
ओर दीवार पर लगा होता एक रोशनदान और आइना
उस आइने जब भी मैं अपने आप को देखता हूं
तो
दिखाई नहीं देता मैं
मुझे दिखाई देती है
एक उम्र
कुछ सपने
एक मौन
और गहरे काले साये
कुछ बैचेनी कल की
कुछ खलबलआहट आज की
ओर इतना देखने के बाद अचानक से याद आता है
कल दफ्तर जाना है