एक मौका
तुम सोच बैठे हो कि मुझसे वफा की कोई उम्मीद नहीं,
मगर एक बार आजमा कर तो देखो…
तुम मान चुके हो कि मैं तुम्हारे इश्क के काबिल नहीं,
मगर एक बार भरोसा करके तो देखो…
तुम क्यों समझते हो कि मेरे साथ अब सुकून नहीं,
मगर एक बार फिर से मुलाकात करके तो देखो…
तुम कहते हो जमाने भर में कि मुझसे अब इश्क नहीं,
मगर एक बार फिर से अपना बना कर तो देखो…