***** एक मुक्तक : श्रृंगारिक दर्शन *****
***** एक मुक्तक : श्रृंगारिक दर्शन *****
एक तरफ तो अर्द्ध नग्नता थी, एक तरफ था पूर्ण लिबास,
मन की आँखें अर्द्ध नग्नता पर, दिल ये पूजे पूर्ण लिबास,
मन तो चंचल तितली सा होता, दिल सागर सा होय विशाल,
इस मन की छोड़ो, दिल की मानो,सद्जीवन का यही विकास,
******* सुरेशपाल वर्मा जसाला