एक माँ की व्यथा…….
एक दुखियारी माँ के दिल की व्यथा मैं सुनाऊ,
हँसकर भी क्या गुजरे उसपर ये तुम्हे मैं बताऊ।
बच्चो के लिए सब कुछ सहती हैं वो,
दर्द अपना न किसी से कहती हैं वो।
सींचा था जिस अंश को बड़े नाजो से,
दुखाया दिल उसी ने कुकर्म काजो से।
बड़े हुए और भूल गए ,
माँ के सब अहसानो को।
निज स्वार्थ में होकर बच्चो ने ,
सुना दिया फरमानों को।
कोई हो गया अलग उस माँ से ,
कोई स्वयं दुल्हनिया ले आया ।
बच्चो की हर करनी का ,
बोझ फिर माँ के सिर आया।
कितने भी दुःख दिए उस माँ को ,
पर दिल उनको दुआ निकली।
फिर एक दिन हो गयी एक वारदात,
बहुत दुखद थी वो बात।
जिस बेटे को पाला पोसा था,
उसने ही हाथ उठा दिया ।
कभी था माँ का छोटा बालक,
आज बड़ापन दिखा दिया।
दिल में छुपकर हर दर्द को ,
निभाया माँ ने अपने फ़र्ज़ को।
घूट जहर का पीकर के ,
उफ़ तक ना वो बोली थी।
बच्चो के कृत्य घिनोने की ,
ना बात किसी से खोली थी ।
बस आश यही थी सब संवर जाये,
ये रिश्ते यूं ना बिखर जाये।
चली गयी जब सहते सहते,
तब कमी फिर माँ की जानी थी ,
सबको प्यार दिया था उसने ,
पर उसकी दर्द भरी कहानी थी………