एक बिखरा ख़्वाब हूँ मैं, तू नींदों में दीदार ना कर,
एक बिखरा ख़्वाब हूँ मैं, तू नींदों में दीदार ना कर,
जो दिख जाऊं गलती से मैं, इस सच को तू स्वीकार ना कर।
कुछ पत्ते शाखों से बिछड़ गए, पतझड़ के मौसम में ठहर गए,
उनसे मिलने की तलब में तू, बहारों का इन्तजार ना कर।
कुछ जज़्बात मोम से पिघल गए, रातों को रौशन कर ढल गए,
उन एहसासों की तलाश में खुद को तू, स्याह अंधेरों में गिरफ़्तार ना कर।
कुछ कतरे बादल से उतर गए, बारिशें बन धरा पर फिसल गए,
उन बूंदों की प्यास में तू, सागर की गहराई से इंकार ना कर।
कुछ अश्क आँखों में सिमट गए, दर्द दहलीज पर हीं रम गए,
उस क़िस्मत की रुसवाई में तू, खींची लक़ीरों से तकरार ना कर।
कुछ ईबादत होठों में सिसक गए, सजदे में झुककर भी सिहर गए,
उन फरियादों की कतार में तू, अपनी ख़्वाहिशों की बौछार ना कर।
कुछ किरदार कहानियों में बस गए, शिद्दतों वाली मोहब्बत वो कर गए,
उन तन्हाई में डुबे अदाकारों से तू, अपनी दुनिया में प्यार ना कर।
एक बिखरा ख़्वाब हूँ मैं, तू नींदों में दीदार ना कर,
जो दिख जाऊं गलती से मैं, इस सच को तू स्वीकार ना कर।