एक बार फिर आयें हैं ऋतुराज…..
एक बार फिर आए हैं ऋतुराज
करने प्रणय ऋतु बसंत के साथ
नव कपोलों नव पल्लव से
सजी धजी है उनकी बारात
मोर पपिहा कोयल की सुरम्य छिड़ी है तान …..
हरियाली की बिछा कर क़ालीन
प्रकृति ने भी अपनी इस बेटी की
ख़ूब सजाई है डोली
सरसों की ऊबटन से ले कर
रंग बिरंगे फूलों से भर दी है झोली …
सज सँवर कर , सितारों का श्रिंगार कर
मदमस्त सी बयार सी
झूमती गुनगुनाती बहार सी
कभी लिपटी कोहरे में
कभी बनाती धूप को हमजोली
देखो चली बसंती करने प्रणय
रितुराज के संग….