एक बात है
एक बात है
कसर-सी
अन्दर ही अन्दर
मचल-सी
कोई तमन्ना थी
पर पूरी न हो सकी।
जानते हो
एक बात और है
पर इसमें है स्वार्थ
देता कौन यहाँ
परमार्थ!
लोग कहते हैं न
कैसे हो ?
कहते हैं हम
ठीक है
अगर कहेंगे नहीं
वो तो……
बस चुप हो जाते
रहम बोले तो
अलावा कुछ नहीं
पर उनकों क्या !