एक बहादुर लड़की
जीवन पथ पर बढ़ती जाती
एक बहादुर लड़की
कितनी बाधाएँ थी आईं
कितनी पीड़ाएँ थी आईं
कितनी शंकाओं ने घेरा
कितनी आशाएं मुर्झाँई
पर न रुकी वह
पर न झुकी वह
कठिन डगर पर मुस्कानों संग
सीना तान कर चलती
एक बहादुर लड़की।
विरह की आंधी को उसने
मन का खेवनहार बनाया
आंखों के पानी को उसने
सीपज सा बनकर निखराया
तूफानों में रुकी नहीं वह
तूफानों में झुकी नहीं वह
घने अंधेरे में भी क्षण क्षण
दीपशिखा सी जलती
एक बहादुर लड़की।
वह न किसी का ज़िम्मा है
न है भारत की शोषित नारी
वह न किसी पर निर्भर है
वह है तनया सुता हमारी
उस की आंखों में तिरते हैं
भावी के कालखण्ड के सपने
उसकी छाया में चलते हैं
उन्मादित सुंदर पथ अपने
वह न रुकी है
वह न रुकेगी
पथपर आगे बढ़ती रहेगी
नहीं क़भी है थकती
एक बहादुर लड़की।
विपिन