“एक पुष्प का जीवन”
कोई अहं नहीं छेड़े मुझको,
कभी रंग नहीं मैं खोता हूं,
कांटो बीच रह कर भी,
दूसरों के लिए ही जीता हूं।
भौंरो के गुंजन सुनता हूं,
मारुत से बाते करता हूं,
देकर अपने तन की खुशबू,
आनंदित मन कर देता हूं।
ठंडी, गर्मी या हो ऋतुराज,
दुःख-सुख सब सह लेता हूं,
टूट कर डाली से फिर भी,
सम्मान किसी का होता हूं।
अमीर-गरीब हो या राजा-रंक,
भेदभाव नहीं मैं रखता हूं,
प्रतिरूप नहीं मैं मानव का,
अभिमान नहीं मैं करता हूं।
मंदिर-मस्जिद या हो गुरुद्वारा,
हर जगह, हर शीश मैं चढ़ता हूं,
मैं कुसुम हूं उस उपवन का,
सदा एक भाव में रहता हूं।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)/ राकेश चौरसिया “युवराज”