@@@ एक पक्षी का दर्द @@@
सकूंन से बैठा था एक परिंदा
कि, कुछ पल गुजार लूं
तेरे दर पर आते हैं न
जाने कितने मांगने वाले
मैं भी कुछ मान लूं !!
पर मेरी आवाज निकलने से
पहले, वहां आने जाने
वालो ने इक पत्थर मार के
मुझ को वह से भगा दिया !!
क्या मिला उनको यह कर के
मेरा दिल सब ने दुख दिया
पुकार मेरी भी सुन लेना
कल पेड़ से भी उसने मुझे उड़ा दिया !!
पिन्ब्जरे में रख कर सताया बहुत
उनके छोटे बच्चे ने वहां से निकल दिया
अब अपना आशियाना कहाँ पर बनाऊं
इस बात को लेकर आया था,
वहां से भी राहगीरों ने मुझे भगा दिया !!
बेजुबान हूँ, मन की व्यथा
नहीं कह पाता, समझाने को
मैं यहाँ किसी को नहीं सताता
पर मेरी पीड़ा का भी बीड़ा
मैंने खुदा ही उठा लिया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ