एक नज़र
ज़िंदगी की रहगुज़र में संगे-राह की तरह ज़माने की ठोकरें खाता रहा ,
वो अदना सा हक़ीक़त में हीरा था ; जो हालात की मार झेलता रहा ,
एक पारखी नज़र की उसे दरकार थी ; जो उसमें छिपी सलाहियत पहचान सके ,
जिस मुक़ाम का वो हकदार है ; उसे वहां तक पहुंचा सके,
वरना , उसी की तरह बेशुमार हीरे वक़्त गुज़रते ; ग़ुमनामी के अंधेरे में खो जाएंगे ,
ज़माने की फ़ितरत और हालातों की गर्दिश से फिर ना उबर पाएंगे ,