एक दो वक्त का फ़ाक़ा है, कोई बात नहीं
एक ग़ज़ल देखिये दोस्तो
एक दो वक्त का फ़ाक़ा है कोई बात नहीं
मुफ़लिसों का यही सदक़ा है, कोई बात नहीं
तुमको रंगों से मुहब्बत है, हमें खुशबू से
ये मिज़ाजों का तफ़रक़ा है कोई बात नहीं
चारागर कितना सियासी है ,यही कहता है
सब मरीजों को अफ़ाक़ा है , कोई बात नहीं
आप क़ातिल हैं मगर मुंह भी दिखा सकते हैं
ये तो अंधों का इलाक़ा है कोई बात नहीं
उस के अशआर पे हक़ अपना समझता है असद
लोग कहते हैं ये सरक़ा है कोई बात नहीं
असद निज़ामी
शब्दार्थ
फ़ाक़ा- उपवास, भूखे रहना।
सदक़ा- दान।
तफरक़ा- भिन्नता।
अफ़ाक़ा- फायदा, शिफ़ा।
सरक़ा- शायरी में चोरी।