एक दीपक जल रहा है ।
एक दीपक जल रहा है ।
पतंगा विकल रहा है ।
एक दीपक स्वयं जलकर
दूसरो को राह दिखाता
पर पतंगा मूर्ख उसको
रोकने को पर फैलाता।
देखकर प्रगति पर की
खुद अपर हो जल रहा है ।
पतंगा विकल रहा है ।
रात है कि अमां घनेरी
तम की है लगती थी फेरी
पर दीप की एक जिद थी
दूर करना है अंधेरा ।
एक दीपक जल रहा है
पतंगा विकल रहा है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र