एक दिव्यांग की अभिलाषा
मेरा भी हक है धरती पर
नहीं दया की भीख चाहिए
अपने भर जी लूंगा मैं भी
अवसर आत्मसम्मान चाहिए
मैं दिव्यांग हुआ तो क्या
मुझको भी कुछ काम चाहिए
चल सकता हूं बिन पैरों के
बिन हाथों के काम करूं
बिन आंखों के दुनिया देखूं
खुद में सारे काम करूं
कमजोर नहीं मत करो उपेक्षा
मुट्ठी भर आसमान चाहिए
मेरा जीवन मेरी आशा
मेरे सपने अपने
बोलो न मुझको बेचारा
मुझको मेरा नाम चाहिए
-सुरेश कुमार चतुर्वेदी