एक दिन उसने यूं ही
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एक दिन उसने यूं ही कहा था, मुझसे-
“देख एक वो भी वक्त था
और एक यह भी वक्त हैl
जब तुम मुझसे अनजान थे
और अब तुम मेरे सब कुछ हो।
मेरे मीत ऐसे ही बदलता है वक्त
कोई नहीं जानता इसे,
कोई नहीं पहचानता है इसकी चाल को।
तब तुम मुझसे अनजान थे
और आज तुम मेरे साथ हो।
मगर फर्क है तो बस इतना कि
तब हवाएं शान्त थी और
आज वह भी बहुत कुछ कहती हैं।
तब तुम्हारे कंधे पर मेरा अधिकार न था,
मगर आज वह सिर्फ मेरा है।
क्या खबर थी मुझे कि तुम ही मेरे हो।
नहीं तो सदियों से संजोकर रखा होता,
अपने इस खजाने को।
तुम कितने पास रहते थे
और मैं ढूंढता रहा
तुमको दुनिया के हर कोने में।
यकीन नहीं होता अभी भी
दिवास्वप्न लगता है,
तेरा मेरा मिलना।
कैसे कहूं कि तुम मेरे हो,
डर लगता है कहीं
मेरी ही नज़र ना लग जाए।
कैसे कहूं तुम मेरे ही हो
कहीं दिल खुशी से झूम ही न जाए।
क्या कहूं तुझे मेरी मंजिल की मालिक।
बस इतना बता दे
तूने मुझे ही क्यों अपनाया?
तेरे लिए इस जहां में
कमी नहीं फरिश्तों की।
पर शायद कोई तुमको
जान ही नहीं पाया होगा।
नहीं तो कैसे मुझे तुम मिल पाते।
तुम जो भी हो क्या कहूं तुमको,
क्या नाम दूं,
देखूं तुम्हें कि थाम लूं?
कि इतना मदहोश हुआ जाता हूं,
मैं बनकर
आफताब सी कली का हमसाया।
लगता है कि दुनिया का
बस मैं ही हूं शहंशाह।
अच्छा सुनो!
जो तुम आ ही गयी हो अब
तो कभी लौट के ना जाना वापस।
क्योंकि डर लगता है मुझे
उन अकेली रातों
और अंधेरी गलियों से।
पाया जो तुमको तो
रोशन हुआ है मेरा जग साराl
तेरे बिना सूरज में भी नहीं था
तेज़ इतना सारा।
लगता है कभी कभी
कि तू है तो मेरा वजू़द है
तू है तो यह जमाना है
मेरी जान मेरे लिए।
जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं
जो तू है साथ,
तो जीने का मकसद है मेरे पास।
जाने क्या जादू है तेरे भीतर
कि आज मैं बहुत खुश हूं तुझे पाकर।
नहीं रहना मुझे तुझे खो कर
अब कभी।
बहुत सही है मैंने
जमाने की ठोकर।
तू मिल ही गयी फिर
नहीं तो और भी सहना होता,
तुम्हें पाने की खातिर।
कैसे शुक्रिया करूं मैं
उस रचनाकार का,
उस विधाता, परवरदिगार का,
जिसने तुमको बनाया।
इतना सुंदर, इतना पावन।
दशा दिशा की परवाह नहीं अब मुझे।
तुम साथ हो तो,
साहिल भी मिल ही जाएगा।
क्या कहूं तुमसे कि
कितना खाली था मैं तुम्हारे बिना
और सुकून से भरा भरा लगता है
अब दिल का हर कोना।
तब भी तुम मुस्कुराते थे
और अब भी तुम मुस्कुराते हो।
मगर फर्क इतना है कि
तब नैन सितारे शर्माते थे और
अब नैनों में सितारे झिलमिलाते हैं।
जब हम मिले,
मैं और तुम थे,
मगर इस वक्त हम हम हैं।
मेरी सांसों के साथी और क्या कहूं तुमसे।
दुनिया की सारी भाषाओं में भी कहूं,
तो भी तेरे बखान को शब्दों की कमी है।”
©️ रचना ‘मोहिनी’