“एक तू ही सच्चा मिला”
एक तू ही सच्चा मिला, जो कभी हमारा नहीं था,
वरना लोग तो अपने होकर भी अपने नहीं होते।
कुछ ऐसे भी मिले हैं हमदर्द यहाँ,
जो अपनों की तबाही में भी बूंद भर नहीं रोते।
मशला ये नहीं कि तुम मेरे ना हुए,
मशला तो ये है कि हम भी किसी और के नहीं होते।
ये जो शब-ए-तन्हाई है, बहुत किस्मत से हमारे हिस्से आई है,
वरना लोग तो झूठी तस्सल्ली भी नहीं देते।
तेरी उल्फ़त में पी गए, ग़म का समंदर,
सच पूछो तो, हम खुशी का एक ज़ाम भी नहीं पीते।
ये मेरी आवारगी थी, या वहम था मेरा!
जुदा होकर तुझसे, हम तन्हा कैसे जीते??
-सरफ़राज़