एक टुकड़ा धूप
एक बार फिर ज़िन्दगी की जंग लड़ते लोगों के लिए :
एक टुकड़ा धूप
हथेली में अपनी भर लूँ !
खोल दूँ ले जाकर
अँधेरों की कोठरी में
जहाँ से आती है
घुटती सिसकती आवाज़ें-
अनजान आवाज़ें
संघर्षशील
जीवन को पाने को !
नहीं कोई राह
बाहर निकलने की।
उम्मीद पर जी रहे हैं
कोई तो लाकर दे उन्हें
एक मुट्ठी धूप।
जी सकें वो भी,
एक पूरी ज़िन्दगी।
अम्बर हरियाणवी
JKSF/0004/2018
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