एक जरूरी खत
एक जरूरी खत
खेत खेत धुआं फैला अरु शहर शहर में आफत।
धान की पराली हो या मृतक देह क्षत-विक्षत।
मिट्टी में ही ये सभी दबाओ खुले में जलाओ मत।
गांव,शहर,राज्य या देश स्वच्छ हवा अच्छा संदेश।
भिन्न-भिन्न भाषाएं हैं नील गगन ही सबकी छत।
पॉलिथीन प्लास्टिक की बुरी लग गई सबको लत।
होते नहीं नष्ट ये ! विष के काकटेल शत-प्रतिशत।
SO2, CO ,NO2 सी.एफ.सी.उभरे बन आफत।
जल्दी इनको सीमित कर दो चीख रही है कुदरत।
नमते नमते गुरुओं को हम सब नमी ही हो गए।
हम सब हो गए थे आसमान अब जमीं हो गए।
दिल से है आभार उनका बीज हैं जो बो गए।
दिनकर से आशीष ले बीजों में ही हम खो गए।
बीज जो पौधा बना था अब काम करता है घना।
बीज जो बोये गए थे उनसे ही यह जग बना।
हम नमीं जो हो गए थे अब आसमाँ फिर से हुए।
अनगिनत इंसान जगत में जनम ले लेकर मुये।
न बन रहा कुछ भी नया न तो कुछ भी नष्ट होता।
लेवोसियर का नियम है ये द्रव्य की अबिनाशिता।