एक गीत तुमको लिखा
एक गीत तुमको लिखा
एक गीत जमाने को,
एक गीत से रुठ गयी तुम,
तो लिखा गीत मनाने को।
जब भी कलम उठायी लिखने को,
खयाल तुम्हारा आया।
किया याद गुजरे पलो को तो,
ये दिल भर आया।
अश्रु से भीगे कागज मेरा,
कलम चले न हाथों से,
खेल रहा था मन जब,
तेरी मीठी बातों से।
भाव उमड़ रहे जब दिल मे,
तब मैं लिखने को तरस गया।
बिन सावन ही नयनो से मेरे
वर्षा जल बरस गया।
एक गीत लिखने में , मैं सदियों से मिल आया।
जैसे कोई सागर फिर नदियो से मिल आया।
प्रवीण भारद्वाज✍️