एक गरीब माँ की आँखों में तपती भूख,
एक गरीब माँ की आँखों में तपती भूख,
दिन-रात का लड़ाई, जीवन की अनबुझ छूट।
सोने के सपने जगाए, जब भूख सताए रात,
खाली पेट भरी आँखों से उम्मीद की चमक बात।
रोटी के टुकड़े के लिए, लड़ती उसकी माँ,
बेटे की प्यास बुझाने, खुद को करती बेजुबा।
जीवन के कठिनाईयों में, वह माँ अकेली खड़ी,
बच्चों के भविष्य की कसौटी पर, उलझनों को सुलझाती चली।
धूप में भीगते उसके पैर, खून की बहार लेते,
पर निराशा के बादलों में, उम्मीद की किरणे फेलते।
जिंदगी की संघर्ष से भरी, वह माँ करती है अपना सब अर्पित,
अपने सपनों के लिए, खुद को हर दिन करती वो समर्पित।