एक ख्वाब, कहाँ किसी को मिलता है,
बात उन्हीं की होती है,जिनमें कोई बात होती है ।
तलाश तो सूरज को भी है इक रात की पर!
चंद्रमा सा मुकद्दर , सबको थोडी मिलता है!
मिलना तो चाहती है, रोशनी भी अंधेरों से!
पर कोई रात चल के , पूर्णिमा से मिल जाये!
ऐसा मुकद्दर हर किसी को थोडी मिलता है!
बहता तो हर कोई है समंदर सा ख्वाब लिए!
लहरों सा साथी मिल जाये हर किसी को!
नदियों सा मुकद्दर ,किसी को थोडी मिलता है
स्वयंवर रूकमणी का सजा हरि दर्शन के लिए!
दीवानी मीरा सा त्याग कहाँ किसी ने देखा है!
राधा सा मुकद्दर कहाँ किसी दीवाने को मिलता है!
अजीत~