एक क्षण-अलौकिक असामान्य।
अविश्वास के बोझ से दबा हुआ,
था मन मेरा तर्कों का मारा,
फिर हुआ एक क्षण का अनुभव ऐसा,
बह निकली आंखों से अश्रु धारा,
समय तो आकर गुज़र गया,
पर क्षण वो आजीवन ठहर गया,
कुछ तो अलौकिक असामान्य था,
वो क्षण बड़ा ही दिव्य था,
करा गया जाने अनुभूति कैसी,
वो क्षण बड़ा ही भव्य था,
असंभव है विवरण शब्दों में जिसका,
उस क्षण में समा गया जीवन सारा,
ना प्रभु सा लगा ना गुरु सा लगा,
मित्रों सा लगा मुझे क्षण वो प्यारा।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।