एक और इंकलाब
?
सदियों पुराने जुल्म का
हिसाब इंकलाब है
चाहे कोई सवाल हो
जवाब इंकलाब है…
सरदार भगतसिंह और
भीमराव अंबेडकर
जिसके लिए फना हुए
वो ख़्वाब इंकलाब है…
तख्त और ताज के
पैरों तले रौंदे हुए
लोगों के ज़मीर की
आवाज़ इंकलाब है…
हाथों में मशाल और
होठों पर नारे लिए
एक नए दौर का
आगाज़ इंकलाब है…
माली और शिकारी की
साजिशों के जाल में
उलझे हुए परिंदों की
परवाज़ इंकलाब है..!
-शेखर चंद्र मित्रा
सेवरही(कुशीनगर)