एक उड़ती चिड़िया बोली
एक उड़ती चिड़िया बोली
तू क्यों नहीं उठ सकता है
अंतर्मन में झांक जरा
तू क्या कर सकता है
एक अकेला जुगनू भी
अंधकार हर सकता है
एक पाव पर वाला यहां
पर्वत पर चढ़ सकता है
सूरदास बन करके कोई
मोहन से मिल सकता है
धरती के रघुवीर जब
शबरी घर आ सकते हैं
उस शबरी के जूठे बेर
रघुवीर खा सकते हैं
इस दुनिया में हम भी तो
कोई मंजर पा सकते हैं
प्रहलाद की जान बचाने
नरसिंह बन आ सकते हैं
यह धरती के महाप्रभु
लाज हमारी बचा सकते हैं
✍️कवि दीपक सरल