एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई
बर्फ की चादर हो जैसे पिघलती हुई
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई।
दूर गगन में सूरज लगे उतरा जमीं पर
जमीं आसमान मिलता दिखे वहीं पर
आसमान सजे-धजे दिखते सितारों से
जमीं भी कम नहीं है बसंत बहारों से
ओस की बूंदें पत्तों पर फिसलती हुई
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई ।
पेड़ों पर जुगनू जगमगाते रातों को
हवाएं छेड़ती रहती नर्म शाखों को
नन्ही गुलाबी कोंपलें मुस्कुराती हुई
हल्की-हल्की बारिश में नहाती हुई
चंद्रमा बादलों में छुपके खेलती हुई
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई
मन्द -मन्द बहती है बयार पुरवाई
पकते गेहूं,तीसी,मटर,सरसो,राई
आम, लीची, कटहल बौरों से लदे
अहा! सेमर लाल फूलों से सजे
वक्त के साथ हर शय बदलती हुई
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर