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28 Aug 2021 · 1 min read

एक इल्तज़ा कज़ा से …

कहीं से कुछ तो मिल जाए इशारा,
ऐ सितमगर तकदीर ! जो तेरा ।

मैं क़ज़ा से ही कर लूं इल्तजा के ,
थाम ले आकर अब वोह दामन मेरा ।

खुश्क है जिंदगी और मेरे लब भी ,
आबे-हयात नहीं मुझे ज़हर देदो ।

मेरी उम्मीदों की शम्मा बुझ रही है,
तेरा भरा न हो जी बढ़ा दे अन्धेरा ।

जी में तो आता है कहीं खो जायुं मैं ,
ख़ाक हो जाए मेरा ये वजूद सारा ।

अब बहुत थक चुकी हूँ मैं दोस्तों!
सोती हूं मैं कफन औढ़ा दो जरा।

2 Comments · 208 Views
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